योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
महाभारत काल से दिल्ली के प्रसिद्ध मंदिर
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
कंबु – कुंदेंदु – कर्पूर – गौरं शिवं, सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥ अंग गौर शिर गंग बहाये ।
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
पाठ करने से पहले गाय के घी का दिया जलाएं और एक कलश में शुद्ध जल भरकर रखें।
अर्थ: हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती। हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया से मुक्ति दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। Shiv chaisa अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ।
शिव चालीसा का पाठ करने से आपके कार्य पूरे होते है और मनोवांछित वर प्राप्त होता हैं।